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काले बादल - लेखनी प्रतियोगिता -01-Mar-2022

उमड़- घुमड़ कर काले-काले
बादल करते हैं देखो शोर
लगता है आज फिर आया
मन हरने को कोई चितचोर।

प्रीतम का प्रतिरूप दिखा
बिरहन की अगन बढ़ाए
कब से है मायूस ये धरती
मेघ आकर प्यास बुझाए।

देख कर तेरी छटा निराली
मन मोरा मयूरा बन जाए
भूल जाए लाज-शरम सब
झूम-झूमकर मनुवा गाए।

बरस-बरस के मेघराज तुम
जलचर को खुश कर जाते
मुरझाए हलधर के मुख को
मुस्काना तुम सिखलाते हो।

गीली कर दे अगर माटी तू
तेरे लिए घरौंदा हम बनाएँ 
हरी-भरी अम्बी डरिया में
बैठा के झूला तुम्हें झूलाएँ।

हे धूम-धुआँरे, काले-काले
गगन के बिकराले बादल
संग हँसती चाँदी की रेखा
नैन तुम्हारे कजरारे सजल।

कभी दूध से सफ़ेद होते हो
कभी साँवले दिखाई देते हो
जीवन के भिन्न-भिन्न रंगों को
अपने स्वरुप से तुम दर्शाते हो।

अंधकार भरे जनजीवन को 
आशामय किरण तुम देते हो
इंद्रधनुषी रंगों को प्रदान कर
जीवन में नवीन रंग भरते हो।

अमीर-गरीब के बीच कभी
कोई भेद नहीं तुम करते हो
हर्षित हो तुम प्रत्येक घर पर 
दिल खोल कर बरसते हो।

कभी चहुँ ओर हरियाली लाते
बाढ़ और सूखे से रुलाते भी हो
प्रकृति का अपमान मत करना
ये बात सबको समझाते भी हो।

हो मदनराज के वीर बहादुर
गर्जन लगे तेरी अत्यंत मधुर
फूट उठता प्रेम भाव का अंकुर
प्रियतम हेतु मन होता आतुर।

प्रेमियों की प्यास बुझाने वाले
जलधर  रूप में जाने जाते हो
जीवों की तपिश मिटाने वाले
कालिदास के मेघदूत होते हो।

देख तुझे होते हैं झींगुर हर्षित
दादुर गाकर हर्ष करें प्रदर्शित
नभ में जब छाते काले बादल
लगता फैला हो माँ का आँचल।


डॉ. अर्पिता अग्रवाल 
नोएडा, उत्तरप्रदेश

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15 Comments

Seema Priyadarshini sahay

02-Mar-2022 04:16 PM

बहुत खूबसूरत

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Nand Gopal Goyal

02-Mar-2022 04:01 PM

Nice

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Dr. Arpita Agrawal

02-Mar-2022 04:02 PM

Thanks

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Shrishti pandey

02-Mar-2022 09:18 AM

Nice one

Reply

Dr. Arpita Agrawal

02-Mar-2022 04:02 PM

Thank you Srishti ji

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